Archive | April, 2011

बेटियां !!

25 Apr

क्या लिखों, की वो परियों का रूप होती है,
या कड़कती ठण्ड में सुहानी धूप होती है |
वो होती है उदासी में हर मर्ज़ की दावा की तरह,
या उमस में शीतल हवा की तरह |
वो चिड़ियों की चेह्चाहाट है,
या निश्छल खिल खिलाहट है |
वो आँगन में फैला उजाला है,
या मेरे गुस्से पर लगा ताला है |
वो पहाड़ की छोटी पर उजली किरण है,
वो जीने का सही आचरण है |
है वो ताकत जो छोटे से घर को महल कर दे,
वो काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुक्कमल कर दे |
वो अक्षर जो न हो तो वर्णमाला अधूरी है,
वो जो सबसे ज्यादा ज़रूरी है |
ये नहीं कहूँगा की सांस सांस होती है,
क्योकि बेटियां तो बस एहसास होती है |

वो मुझसे ऑस्ट्रेलिया में छुट्टियाँ,
मर्सिडीस की ड्राईव, फाइव स्टार में खाने,
या नए नए आई पोड्स नहीं मांगती |
न ही वो बहुत सारे पैसे
अपने पिग्गी बैंक में उडेलना चाहती है,
वो बस कुछ देर मेरे साथ खेलना चाहती है |

में बस यही कहता रहता हूँ,
बेटा काम ज़रूरी है, नहीं करूंगा तो कैसे चलेगा
ये मजबूरी भरे दुनियादारी की जवाब देने लगता हूँ |
वो झूठा ही सही, पर मुझे एहसास कराती है
जैसे सब समझ गयी हो
लेकिन आँखें बंद करके रोती है,
सपने में खेलते हुए मेरे साथ सोती है |
ज़िन्दगी जाने क्यों इतनी उलझ जाती है,
और हम समझते हैं बेटियां सब समझ जाती हैं|

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PS:- Written by Mr. Shailesh lodha.

PS:– The picture courtesy contestedart.com

PS:— For those who can’t read Devanagari, please visit The glow of dawn.

PS:—- And here’s the youtube video of it.